जानिये क्या खास है 1000 रुपये प्रति किलो वाले इस देसी घी में
राठी गायों के घी का जवाब नहीं
पश्चिमी राजस्थान जितना अपनी विविधता के लिए प्रसिद्ध है. उतना ही जाना जता है यहां की प्रसिद्ध राठी गाय की नस्लों के लिए. राठी नस्ल की गाय के घी की पहचान अब देशभर में होने लगी है. दावा तो यहां तक किया जाता है कि इस घी को जिसने एकबार चखा उसके बाद इसकी खुशबू को छोड़ नहीं पाया. आज आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल सहित भारत के विभिन्न राज्यों में इस घी की मांग बढ़ती जा रही है. वहीं इस क्षेत्र में पशुपालन से जुड़े लोगों के लिए एक नया रोजगार का अवसर भी खुल गया है पेश है
यहां-यहां होती है सप्लाई
बीकानेर के लूणकरणसर उपखंड के रतनीसर गांव की राठी गायों का घी तमिलनाडु, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों में लोग कुरियर के ज़रिए मंगवा रहे हैं. रतनीसर से देसी घी मंगवाने की डिमांड बढ़ती ही जा रही है. जिससे राठी गाय पालने वालों की आमदनी भी बढ़ रही है.
सेना भी है घी के मुरीद
इस नस्ल की गाय के दूध से बनने वाला घी स्वास्थ्य वर्धक तो होता ही है, शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने वाला होता है. महाजन फील्ड फायरिंग रेंज में युद्धाभ्यास के लिए आने वाले सेना के अधिकारी और जवान इस घी के इतने मुरीद हो गए हैं कि यहां से जाने के बाद भी डाक पार्सल के जरिए ऑनलाइन भुगतान कर यहां के पशुपालकों से घी मंगवाते हैं.
इंटरनेट बना भुगतान का ज़रिया
इंटरनेट के ज़रिए ऑनलाइन बैंकिंग सिस्टम से पेमेंट पाने से पशुपालकों की कमाई भी बढ़ गई है. ऑनलाइन सेवा का ही कमाल है कि साधन विहीन रेतीले धोरों के बीच बसे गांव रतनीसर की राठी गायों से तैयार किया गया देसी घी देश के दक्षिणी राज्य तक सप्लाई होने लगा है. रतानिसर गोपालन के लिए संभाग भर में अपनी अलग पहचान रखता है. करीब नब्बे घरों की आबादी वाले इस गांव में राठी नस्ल की करीब पांच हजार से ज्यादा गाय हैं.
देश के अंतिम कोने तक भेजा जाता है घी
पशुपालक शीशराम कहते हैं कि ‘आसपास के क्षेत्र में हमें दूध का बहुत कम दाम मिलता था जिससे पशुओं का खर्च निकलना मुश्किल हो रहा था. हमने सोशल मीडिया पर रतनीसर की राठी नस्ल की गायों और बिलोने के शुद्ध घी का प्रसार किया, जिसके सुखद परिणाम आने लगे हैं. दक्षिण राज्यों के कई सैनिक परिवार डाक पार्सल के जरिए घी मंगवाते हैं. यह घी एक हजार प्रति किलो की दर से बेचा जाता है. डाक खर्च अलग से लगाया जाता है. घी का दाम ऑनलाइन प्रक्रिया के ज़रिए पहले ही जमा कराया जाता है. उसके बाद डाक पार्सल में कार्टून से घी को इसके ग्राहकों तक भेजा जाता है.’
लोगों को मिला कमाई का नया ज़रिया
पशुपालक विनोद कुमार कहते हैं कि ‘चौथी गायों के दूध के कम दाम मिलने के कारण लोग धीरे-धीरे अमेरिकन गायों की ओर रुझान करने लगे थे लेकिन रखनी सरगांव के शीशपाल की इस नई पहल के बाद अब आसपास के ग्रामीण भी राठी नस्ल की गायों का पालन करने लगे हैं और साथ ही कमाई का एक नया जरिया भी कायम कर रहे हैं.’