Operation White Wash: स्टार वॉर्स मूवी में आपने दुश्मन पर इलेक्ट्रिक वेव्स का हमला ज़रूर देखा होगा. ‘एक्स मैन’ मूवी में स्टॉर्म नाम की म्यूटेंट को दुश्मनों पर बिजलियां गिराते भी देखा होगा और साइक्लॉब्स की लावा उगलती आंखें तो आपको ज़रूर याद होंगी. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि फिल्म बनाने वालों को ये सब सूझता कहा से है. कहां से आते हैं उन्हें इतने फैसिनेटेड लेकिन खतरनाक आइयाज़, क्या ये सब सिर्फ कोरी कल्पना होती है, या फिर इसका कुछ सिर पैर भी होता है. सवाल ये भी कि क्या इन करेक्टर्स की ये ताकतें वैज्ञानिक ईजाद नहीं कर सकते.
हालांकि इसका सटीक जवाब मुश्किल है, लेकिन इनमें से ही कुछ ताकतों को वैज्ञानिकों ने डेवलप भी कर लिया है और उनकी टेस्टिंग भी हो चुकी है, लेकिन फिल्मों की तरह ही इसे सुरक्षा कारणों से पब्लिक से छिपाकर रखा गया है, इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इम्पल्स को काबू में करके दुश्मनों की सेना का सफाया करने वाले हथियार काली को भारत ने भी बना लिया है लेकिन सुरक्षा कारणों से इसका डेमॉन्स्ट्रेशन और इसका अनाउंसमेंट नहीं किया गया है. इस हथियार का नाम है काली (KALI- Kilo Amper Linear Injector).
पाकिस्तान आरोप लगाता है साल 2012 में काली के ज़रिए भारत ने पाकिस्तान के 130 सैनिकों को जहन्नुम का रास्ता दिखा दिया था. लेकिन भारत ने कभी इस बात को स्वीकार नहीं किया. हालांकि मीडिया में भी ऑपरेशन व्हाइट वॉश नाम से इस पूरी घटना का ब्यौरा कई जगह मिलता है.
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेन्टर यानी बार्क (BARC)और रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान यानी डीआरडीओ (DRDO) दोनों ने मिलकर भारत के लिए सबसे शक्तिशाली ‘काली’ नाम का हथियार का बनाया है. यह एक बेहद सीक्रेट मिशन है, जिसके बारे में ज्यादा जानकारियां बाहर नहीं आई हैं. भारत का यह सीक्रेट हथियार प्रोजेक्ट इतना गुप्त और अहम है कि तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर (Nanohar Parrikar) ने राष्ट्रहित का हवाला देकर लोकसभा तक में इससे संबंधित कुछ भी जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया था. दरअसल मनोहर पार्रिक्कर जब रक्षा मंत्री थे तब उनसे लोकसभा में प्रश्न किया गया कि क्या काली 5000 को देश के रक्षा विभाग में शामिल करने का कोई प्रस्ताव है, अगर हां तो उसके बारे में बताया जाए. रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिक्कर ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि ‘जो जानकारी मांगी गई है वो संवेदनशील है और इस जानकारी का खुलासा देश की सुरक्षा के हित में नहीं है.’
रक्षा मंत्री के इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि ‘काली’ पर लगातार काम चल रहा है और इसके बारे में सरकार कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकती है. काली को भारत हथियार ही स्वीकार नहीं करता है, भारत इसे मात्र एक इंट्रूमेंट बताता है जो अपने डिफेंस डाइवाइसेस को टेस्ट करने और सुरक्षा के साज़ ओ सामान को मज़बूत बनाने के काम आता है.
ये था ऑपरेशन व्हाइट वॉश
सियाचिन ग्लेशियर रणनीतिक लिहाज़ से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण जगह है. यहां पर भारत और पाकिस्तान (Pakistan), दोनों के सैनिक मौजूद रहकर सरहदों की निगरानी करते हैं. इस इलाके में साल भर बर्फ जमी रहती है. यही कारण है कि इस इलाके की निगरानी करना बेहद मुश्किल होता है. भारत के पास एडवांटेज ये है कि सियाचिन की ऊंटी चोटियां हमारे कब्जे में है. चोटियों के दूसरी ओर पाकिस्तान सेना निगरानी करती है, यहां पर आपसी झड़प में उतने सैनिक नहीं मरते हैं, जितना एवलांच आने से. काली की एंट्री इसी आइडिया से शुरू होती है.
कहा जाता है कि भारत की खुफिया एजेंसी RAW और रक्षा अनुसंधान संगठन यानि DRDO ने मिलकर एक प्लान बनाया. प्लान था सियाचिन में उस जगह पर एवलांच लाने का, जहां पर पाकिस्तान चौकिया थीं. इसके लिए तय हुआ कि काली को मिशन पर लगाया जाएगा, लेकिन इस मिशन की राह में रोड़ा बन रहा था काली का आकार, इसे चलाने के लिए लगने वाली बिजली की मात्रा, और काली के ऑपरेशन में पैदा होने वाली भीषण गर्मी. ऐसी स्थिति में काली को सियाचिन की चोटियों पर ले जाना तो मुश्किल था हां अगर काली वहां पहुंचा भी दिया जाता तो ये ऑपरेट होने पर वहां इतनी गर्मी पैदा कर देता कि जिस बर्फीले इलाके में इसे लगाया जाता वो खुद भी पिघल जाता.
तब RAW ने प्लान बनाया कि सियाचिन पर काली से ही हमला किया जाएगा. लेकिन काली को सियाचिन की चोटी पर इंस्टॉल करने के बजाए, इसे लगाया जाएगा, भारत के भारी-भरकम एयर वॉर प्लेन IL-76 पर. प्लानिंग तैयार थी, वक्त मुकर्रर था, और टारगेट सेट था, बस RAW इस कोशिश में थी कि ये प्लान लीक न होने पाए. लिहाज़ा इसे एक्जीक्यूट करने का काम हुआ सियाचिन से 1877 किलोमीटर दूर उड़ीसा के एक राज्य कटक में.
काली IL-76 पर लोड हो चुका था, किसी को ये नहीं पता था कि आखिर ये भारी भरकम मशीन है क्या, और किसलिए इसे प्लेन में लादा गया है. खैर काली हवाई जहाज पर सवार होकर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर एयरबेस पर पहुंचा. यहां पर एक दिक्कत थी कि काली को चलाने के लिए ज़रूरी बड़ी मात्रा की बिजली कैसे दी जाए, RAW एजेंट्स ने इसका भी समाधान खोजा, एक यात्री प्लेन का इंजन खोला गया. इसे IL-76 में लोड किया गया. इससे कैपेसिटर्स और ट्रांसफार्मर्स जोड़कर काली को बिजली सप्लाई का रास्ता भी साफ कर दिया गया. बस अब काली को सियाचिन में अपने टारगेट को हिट करना था, लेकिन इससे पहले भी कुछ और तैयारियां बाकी थीं.
दरअसल जिस लेवल की तैयारी काली से हमले के लिए की जा रही थी, अगर वो लीक हो जाती तो भारत को बड़ा नुकसान तो होता ही, अगर वो दुश्मन के हमले का शिकार हो जाता तो रॉ की बड़ी किरकिरी भी तय थी. लिहाज़ा IL 76 उड़ने से पहले, इसकी सुरक्षा के लिए अवॉक्स प्लेन उड़ाया गया. अवॉक्स यानि एयर वॉर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम, जो उड़ते समय वायु क्षेत्र की निगरानी करता है, ताकि किसी भी तरह की विमान की घुसपैठ या किसी मिसाइल के हमले को डिटेक्ट करके उसे न्यूट्रलाज किया जा सके.
अवॉक्स जहाज के पीछे गश्त कर रहे थे पुणे से उड़ान भरने वाले सुखोई विमान और IL76 के साथ उड़कर काली की सिक्योरिटी में लगाए गए मिराज 2000 फाइटर जेट्स. इस दौरान ये बात ध्यान रखी गई कि कोई भी जहाज़ कश्मीर से नहीं उड़ा था. ताकि देश के अलग अलग हिस्सों से उड़ने वाले जहाज़ों पर दुश्मन की नज़र न पड़ने पाए. तैयारी इतनी फूल प्रूफ की गई, कि कश्मीर से पहले दूसरे IL76 फ्यूल रीफिलर विमान से सुखोई और मिराज विमानों को हवा में ही ईंधन भरकर टैंक फुल कर दिया गया. मिशन को इस कदर सीक्रेट रखा गया था कि काली को ले जा रहे IL76 विमान के स्टाफ के अलावा किसी को भी ये नहीं पता था कि ये मिशन क्या है, ये फाइटर प्लेन्स और IL76 आखिर कहां जा रहा है, और क्यों?
कहीं किसी तरह की चूक न होने पाए, लिहाज़ा इस पूरे मिशन को खामोशी से ISRO के सैटेलाइट्स अंतरिक्ष से रिकॉर्ड कर रहे थे. सैलेटाइट्स सियाचिन में अपने टारगेट यानी पाकिस्तानी बेस के हर सेकेंड के मूवमेंट पर नज़र रख रहे थे, वहां जमी बर्फ की मोटाई कैलकुलेट की गई. हवा का दबाव जांचा गया. हवा की स्पीड. यहांतक की ह्यूमिडिटी और सूरज की रोशनी भी.
7 अप्रैल 2012 की वो तारीख थी जब सुबह 5 बजकर 40 मिनट पर काली को अपना काम अंजाम देना था. काली ने सियाचिन में अपना टारगेट लॉक किया और भारी मात्रा में हैवी इंपल्स की इलेक्ट्रो मैग्नेटिक तरंगों की बौछार कर दी. नतीजा ये हुआ कि सियाचिन की चोटी पर से बर्फ की बहुत बड़ी चट्टान खिसक गई और इलाके में एवलान्च आ गया. भीषण अवलांच की रफ्तार थी 300 किलोमीटर प्रतिघंटा. यानि बुलेट ट्रेन की रफ्तार से बर्फ का ये तूफान अपने रास्ते में आने वाली हर चीज़ को तिनके की तरह उड़ाता पाकिस्तानी बेस पर करोड़ों टन बर्फ की करीब 100 फीट मोटी चादर बिछा गया. यानि करीब 10 मंज़िल इमारत जितनी बर्फ. जबतक पाकिस्तान को काली के कहर की ख़बर लगती, करीब 130 पाकिस्तानी सैनिकों की कब्र बन चुकी थी और ये सब हुआ महज़ 15 मिनट के अंदर.
भारत ने इसे नाम दिया था ‘ऑपरेशन व्हाइट वॉश’. ये मिशन इतना सीक्रेट था कि भारत ने कभी इसे स्वीकार ही नहीं किया कि उसने ऐसा कुछ किया भी था.
तो ये था ऑपरेशन व्हाइट वॉश और ये थी काली की ताकत, यहां पर कई बातें जो गौर करने की हैं. वो ये कि ऑपरेशन व्हाइट वॉश का वक्त सुबह क्यों रखा गया, जबकि एवलॉन्च दो दिन के वक्त भी सूरज की गर्मी में बर्फ को पिघलाकर भी लाया जा सकता था, तो इसका जवाब ये है कि दिन के वक्त सूरज की गर्मी से बर्फ पिघलने पर वातावरण में नमी की मात्रा बढ़ सकती थी, जिसके कारण काली से जब इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इम्पल्स की किरण टारगेट पर छोड़ी जाती तो वो रिफरेक्शन के कारण अपना टारगेट मिस भी कर सकती थी, लिहाज़ा इस मिशन को पूरे होमवर्क के बाद अंजाम दिया गया, ताकि इसमें चूक की कहीं गुंजाइश ही न रहे.
काली (KALI) के जन्म की कहानी
दरअसल ‘काली’ के निर्माण की योजना साल 1985 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर यानि बार्क के डायरेक्टर डॉ. आर. चिदंबरम ने बनाई थी, लेकिन इस पर काम 1989 में जाकर शुरू हुआ. काली पर पिछले 30 सालों से काम किया जा रहा है और तब से इसके कई वर्जन तैयार किए जा चुके हैं. पहले ‘काली’-80, फिर ‘काली’-100, इसके बाद ‘काली’-200 फिर ‘काली’- 5000 और अब ‘काली’-10000 विकसित किया जा चुका है. अब आपको बता देते हैं काली की तकनीक और कैसे पड़ा इसका नाम काली इसके बारे में.
KALI यानि Kilo Ampere Linear Injector
1- ‘काली’ का मतलब है किलो एम्पियर लीनियर इंजेक्टर
2- यह बेहद बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा करने वाला यंत्र है
3 यह सेकंड के हजारवें में हिस्से में एक बहुत बड़ी ऊर्जा का तूफान पैदा करता है
4- ऊर्जा का यही तूफान किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को तुरंत खराब कर देता है
5- यह भारी मात्रा में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की बौछार करता है जिससे किसी भी इलेक्ट्रॉनिक मशीन में लगे चिप्स भुन जाते हैं
टॉप सीक्रेट वेपन काली हवाई जहाज, मिसाइल पानी के जहाज़, सबमरीन वगैरह के इलेक्ट्रॉनिक-इलेक्ट्रिकल सर्किट और चिपों को इलेक्ट्रॉन माईक्रोवेव तरंगों के शक्तिशाली प्रहार से फेल करके उन्हें कुछ ही पलों में तबाह कर सकता है. यही नहीं इसकी बीम के जरिए यूएवी और सेटेलाइट को भी गिराया जा सकता है. दरअसल काली के अंदर छोटे-छोटे उपकरणों में ऊर्जा को इकट्ठा करने की क्षमता होती है, जिसको किसी भी वक्त एक साथ एक झटके में रिलीज किया जा सकता है. यानि जैसे घरेलू कैपेसिटी यानी कंडेन्सर काम करता है, जिसमें बिजली जमा होती है, जब कोई उसे छू ले तो ज़ोर का झटका लगता है, काली भी ठीक इसी तर्ज पर काम करता है. भारत के पास मौजूद काली 10000 वर्जन से 40 गीगावॉट तक ऊर्जा पैदा की जा सकती है, जो भारत में जनसंख्या के लिहाज़ से सबसे बड़े राज्य यूपी की ऊर्जा ज़रूरत से भी की गुना ज्यादा है. लेकिन काली ये ऊर्जा जनरेट नहीं करता, स्टोर करके किसी प्वाइंट पर इंजेक्ट करता है, वो भी सिर्फ 100 मिली सेकंड में. यानि कि हज़ारों बिजलियां एकसाथ गिरने जितना झटका लगा और खेल खत्म. बताया जाता है कि काली को शुआती दौर में भारत ने अपने सुपरसोनिक विमानों की जांच के लिए बनाया था, योजना थी कि काली को भारतीय सैटेलाइट पर तैनात किया जाएगा. जिससे कि किसी भी परमाणु हमले की स्थिति में उन्हें कोई नुकसान ना पहुंचे और हमारे उपग्रह सूर्य की कॉस्मिक किरणों से भी सुरक्षित रहें. लेकिन साल 2004 में जब काली 5000 बना और इसकी ऊर्जा स्टोर करने और ऊर्जा विस्फोट की क्षमता देखी गई, तो इसे हथियार के तौर पर विकसित करने का भी फैसला किया गया. लेकिन भले ही सरकार काली का वजूद न स्वीकार करती हो, लेकिन भारत के दुश्मन इसके नाम तक से ख़ौफ़ खाते हैं.