कोरोना महामारी के बीच उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री और धर्मगुरु सतपाल महाराज के शिष्य़ महात्मा सत्यबोधानंद ने मानवता की मिसाल कायम की है.उत्तराखंड के हल्द्वानी में मानव उत्थान सेवा समिति के प्रभारी महात्मा सत्यबोधानंद ने पहले अपनी जान जोखिम में डालकर कोरोना संक्रमित विमल वर्मा को सुशीला तिवारी अस्पताल हल्द्वानी में भर्ती करवाया.लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद विमल वर्मा को नहीं बचाया जा सका….वहीं विमल वर्मा की मौत के बाद परिवार का कोई भी सदस्य अस्पताल नहीं पहुंचा.इस पर महात्मा सत्यबोधानंद ने विमल की डेड बॉडी के बारे में जानकारी लगाई तो पता लगा कि विमल का शव मोर्चरी में भेजा जा चुका है..लेकिन अब सवाल था कि विमल का अंतिम संस्कार कौन करेगा.
विमल का छोटा भाई मोर्चरी पहुंचा लेकिन वहां का नजारा देख वह घबरा गया और उसे अपने छोटे-छोटे बच्चों की चिंता सताने लगी.इस पर महात्मा सत्यबोधानंद ने खुद ही पीपीई किट खरीद कर मोर्चरी में जाकर लाशों के ढेर से विमल वर्मा के शव को खोजा और प्राइवेट एंबुलेंस के जरिए राजपुरा श्मशान घाट ले जाकर उसका अंतिम संस्कार किया.जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता है..कोरोना महामारी में लोग इतने भयभीत हैं कि अपनों की ही मौत के बाद अर्थी को कंधा देने में हिचक रहे हैं.ऐसे दौर में विमल वर्मा का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करके मानव उत्थान सेवा समिति के संत महात्मा सत्यबोधानंद ने मानवता की उच्च मिसाल पेश की है और मानव धर्म को निभाया है.
16 साल की उम्र में संन्यास लेने वाले महात्मा सत्यबोधा नंद जी जैसे लोगों के दम पर ही आज इंसानियत जिंदा है और ऐसे लोग समाज की सच्ची धरोहर हैं.

